holi kyu manaya jata hai |Holi Festival history in hindi , Happy Holi 2020

holi kyu manaya jata hai : होली पर्व हिंदू पंचांग के अनुसार फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। होली भारत भर में मनाया जाता वाले हिंदुओं के सबसे पुराने त्योहारों में से एक हे । यह पर्व प्राचीन मदन पूजा का एक महत्वपूर्ण पर्व है । यह पर्व प्राचीन मदन पूजा के अवसर पर मनाया जाता है ।

आज हम इस पोस्ट में holi kyu manaya jata hai, होली मानने का कारण , होली पर निबंध, holi eassy in hindi आदि के बारे में जानकारी देंगे।

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holi kyu manaya jata hai | होली मानने का ऐतिहासिक कारण

पुराणों के आधार पर हमें बहुत ही पीछे जाना पड़ेगा, तब कहीं जा के होली या होलिकादहन का परिचय प्राप्त हो सकेगा। शायद प्रह्लाद का नाम सभी को मालूम होगा। वे दैत्य वंश में एक परम भक्त राजा हो चुके हैं। दैत्य का अर्थ होता है राक्षस। कश्यप ऋषि और उनकी पत्नी दिति से दैत्यों का जन्म हुआ था। दिति पुत्रों को ही दैत्य कहा जाता है।

उन्हीं दैत्यों में हिणांक्ष और हिरण्यकश्यपु नाम के दो भाई हुए थे। दोनों भाइयों ने देवताओं को जीना दुर्लभ कर दिया था। दोनों परम वीर थे।

ब्रह्मा जी को अपने तपस्या से प्रसन्न करके वरदान प्राप्त किया। वरदान प्राप्त करने के बाद हिरण्यकश्यपु उदण्ड होकर अपने आप को भगवान बताने लगा। भगवान विष्णु से वैर- भाव रखने के कारण विष्णु के भक्तों को भी सताने लगा।

हिरण्यकश्यपु की एक बहन थी। होलिका। होलिका ने भी ब्रह्मा जी को प्रसन्न कर के एक वरदान पायी थी। होलिका को ब्रह्माजी एक चादर प्रदान किये थे। उस चादर का ऐसा प्रभाव था कि जो कोई उस चादर के साथ अग्नि में प्रवेश करेगा, अग्नि उसे जला नहीं सकता।

एक समय की बात है, जब ब्रह्मा जी को प्रसन्न करने के उद्देश्य से हिरण्यकश्यपु तपस्या करने चला गया। उस समय हिरण्यकश्यपु की पत्नी अपने महल में थी। उस समय वह गर्भवती थी । इन्द्र ईष्ष्या से दैत्य पत्नी का हरण कर नष्ट करने जा रहे. थे। उसी समय नारद जी अपने मार्ग पर जा रहे थे। नारद जी ने जब इन्द्र के द्वारा दैत्य पत्नी को ले जाते देखा तो, नारद द्रवित होकर इन्द्र को समझा कर दैत्य पत्नी को अपने आश्रम में ले आये।

गर्भ में पल रहा बालक भगवत् कथा के बीच समय का इन्तजार करता रहा। वातावरण के प्रभाव से दैत्य पत्नी और गर्भ में पल रहा बच्चा दोनों भगवान में श्रद्धा करने लगे। समय आने पर दैत्य हिरण्यकश्यपु की पत्नी ने एक सुन्दर, सुशील, परम भक्त प्रहलाद को जन्म दिया। जन्म से ही बालक प्रभु के नामों उच्चारण कर रहा था।

जब हिरण्यकश्यपु तप करके लौटा तो बालक को पाकर अति प्रसन्न हुआ। किन्तु बालक के आचरण से चिन्तित रहने लगा। अपने सबसे प्रधान दुश्मन विष्णु का नामोचार से हिरण्यकश्यपु प्रह्लाद को समझाने का प्रयास किया। किन्तु सफलता नहीं मिली। अनेक उपाय किया गया किसी प्रकार प्रहलाद विष्णु का नाम लेना छोड़ दे।

जब सब उपाय करके थक गया तो हिरण्यकश्यपु प्रह्लाद को ही समाप्त करने का प्रण किया। उसे मारने का भी अनेक उपाय किया गया, पर सब का संब व्यर्थं हुआ। किसी प्रकार भी प्रहलीद को मरते न देखकर हिरण्यकश्यपु व्याकुल हो गया।

दैत्यराज को व्याकुल देखकर उनकी बहन होलिका सामने आकर अपने तपस्या और ब्रह्मा जी का वरदान बतायी। तब निर्णय किया गया, होलिका अपने गोद में लेकर प्रहलाद के साथ अग्नि में प्रवेश करेगी ।

प्रात:काल चिता सजाया गया। हीलिका अपने चादर के साथ चिता के बीच में बैठ गई। प्रहलाद को अपने गोद में ले लेती है। उसके बाद चिता में अग्नि लगा दिया जाता है। कुछ देर के बाद अग्नि प्रज्ज्वलित हो गया।

भगवान के परम भक्त प्रहलाद को नष्ट करने के प्रयास से हालिका अपने आराध्य का दिया गया मंत्र भूल जाती है। उसी समय जोरों की आंधी आकर चादर उड़ा ले.जाता है। चादर न होने के कारण होलिका उसी चिता में जल कर राख हो जाती है।

भंक्त प्रहलाद सकुशल अग्नि से बाहर निकल आता है। कहा गया है- मारने वाले से बचाने वाले का हाथ उपर होता है। होलिका के भस्म होने के बाद भगवान विष्णु ने हिरण्यकश्यप का वध कर दिया। इस तरह संसार से बुराई का नाश हुआ और अच्छाई की जीत। इसी के चलते उत्तर भारत के कुछ राज्यों में होली से एक दिन पहले होलिका जलाई जाती है.

पुराणों में उल्लेख कि उसी चिता भष्म के द्वारा होली का प्रचलन हुआ।

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होली मानने का वैज्ञानिक कारण

होली एक पवित्र त्यौहार है। इसमें सब वैर-भाव भूलाकरं आपस में प्रेम से गले मिलते हैं। एक-दूसरे के घर जाकर अबीर-गुलाल का आद्रान-प्रदान किया जाता है। मिठाइयाँ बाँटी जाती है। आज के दिन भेदभाव नहीं रहता । सब मिलकर एक साथ होली का आनन्द लेते हैं।

इस अवसर पर गान-बैजाना का भ्री एक अपना अलग महत्व है । एक साथ सब हिल-मिल कर गाना गाते हैं और नाचते हैं । इसके बीचोबीच जोगीरा भी कहाँ जाता है। एक और महत्व यह भी है कि यह वैसंत ऋतु का त्यौहार है। इस ऋतु को काम ऋतु भी कहा जाता है।

जवान लड़के-लड़कियाँ उमेंग के साथ होली खेलते हैं। अबीर-गलाल का और मैहत्व यह है इसके व्यवहार से अनेक प्रकार के रोग के जीवाणु मर जाते हैं। हम यह कह सकते हैं कि होली विज्ञान के दृष्टिकोण से हमारे लिए उपयोगी है । एक यह भी कारण है कि सर्दी के बाद गर्मी आने से अनेक प्रकार के चर्म रोग होने का डर रहता है। सर्दी के मौसम में सब पानी का व्यवहार कम करते हैं, जिससे शरीर पूर्ण रूप से साफ नहीं हो पाता। शरीर के रोमकूप मैलों से भर जाता है। जिसके कारण चर्मरोग होने की संभावना रहता है। इस अबीर गुलाल खेलने के बाद हम सब अच्छी तरह रगड़-रंगड़ कर साबुन से स्नान करते हैं। इस स्नान से हमारे रोमकूप में बैठी मैल निकल जाता है और हमारा शरीर साफ और निर्मल हो जाता है। अब हम देखते हैं कि (Science) विज्ञान के दृष्टि से भी हमारा यह त्यौहार अत्योत्तम है ।

होली एक पवित्र त्यौहार है। यह त्यौहार सभी धर्मों के लोग मनाते हैं। क्या हिन्दू, क्या मुसलमान, क्या सिख क्या ईसाई । सब एक मंच पर आकर खड़े होते हैं । तब यह प्रतीत होता है कि हम सब अब वास्तविक में मानव जाति हैं। होली में जाति-धर्म का कोई भेद-भाव नहीं रहता यहाँ सब प्रकृति प्रेम में डूब जाते हैं। प्रकृति धर्म ही मानव धर्म हैं। हम सब एक ही भगवान के संतान हैं। आजकल कुछ त्रुटियाँ भी देखने को मिलता है। कुछ लोग शराब पीकर भांग खाकर उदण्ड हो जाते हैं। विचित्र विचित्र रंगों का व्यवहार करते हैं। आपस में गाली- गलौज करते हैं, मार-पीट करते हैं। सब रंगं में भंग हो जाता है । अगर इन त्रुटियों को निकाल दिया जाय तो होली एंक पवित्र, ऑनन्द, प्रेम और सद्भावना का त्यौहार है।

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