रबिन्द्रनाथ टैगोर की जीवनी | Rabindranath Thakur biography in Hindi

Rabindranath Thakur biography in Hindi: विश्व-कवि’ की आख्या से विभूषित गुरुदेव रवींद्रनाथ ठाकुर उन प्रात: स्मरणीय
मनीषियों की परंपरा में आते हैं, जिन्होंने भारतीय सभ्यता और संस्कृति को अपने समग्र
रूप में चित्रित किया।

rabindranath tagore ने अपनी रचनाओं में न सिर्फ भारत की गौरवमयी सभ्यता-
संस्कृति को अभिव्यक्ति दी, बल्कि विश्व मानवतावादी दृष्टि से पश्चिमी सभ्यता-
संस्कृति के उज्ज्वल तत्वों को अपनाने का आह्वान भी किया।

rabindranath tagore मूलतः बांग्ला के कवि-कलाकार थे, परन्तु अपनी उदारवादी मानवतावादी दृष्टि के कारण आपने क्षेत्रीयता से ऊपर उठकर राष्ट्रीयता का, फिर राष्ट्रीयता से ऊपर उठकर अंतर्राष्ट्रीयता एवं विश्वबंधुत्व का स्पर्श किया। इस प्रकार वे पहले बंगाल के, फिर भारतवर्ष के और फिर संपूर्ण विश्व के चहेते बने ।

Rabindranath Tagore Biography in hindi

जन्म7 मई 1861
पिताश्री देवेन्द्रनाथ टैगोर
माताश्रीमति शारदा देवी
जन्मस्थानकोलकाता के जोड़ासाकों की ठाकुरबाड़ी
धर्महिन्दू
राष्ट्रीयताभारतीय
भाषाबंगाली, इंग्लिश
उपाधिलेखक और चित्रकार
प्रमुख रचनागीतांजलि
पुरुस्कारनोबोल पुरुस्कार
म्रत्यु7 अगस्त 1941
Rabindranath Thakur biography in Hindi

Rabindranath Thakur/ रबिन्द्रनाथ टैगोर की जन्म, शिक्षा, रचनाये,

कवि-गुरु Rabindranath thakur का जन्म 7 मई, 1861 ई. को कोलकाता के जोरासाँको
में एक संपत्न एवं प्रतिष्ठित वं ला परिवार में हुआ था। उनके पिता देवेंद्रनाथ ठाकुर जी
दार्शनिक प्रवृत्ति के प्रख्यात समाज-सुधारक थे।

rabindranath tagore की शिक्षा-दीक्षा मुख्यत: घर पर ही हुई। काव्य, संगीत, चित्रकला, आध्यात्मिक चिंतन, सामाजिक सुधार एवं राजनीतिक सुरुचि का वातावरण उन्हें परंपरा और परिवार से मिला। उन्होंने प्रकृति एवं जीवन की खुली पुस्तक को लगन के साथ पढ़ा। स्वाध्याय के बल पर आपने विविध विषयों का विपुल ज्ञान प्राप्त कर लिया। सत्रह वर्ष की अवस्था में आप
इंग्लैंड गए। वहाँ आपको कई सुप्रतिष्ठित अंग्रेज कवि-साहित्यकारों का सान्निध्य प्राप्त
हुआ और वे पश्चिमी विचारधारा के आलोक से दीप्त होकर स्वदेश वापस आए।

काव्य प्रतिभा के धनी रवींद्रनाथ ठाकुर ने सात वर्ष की कोमल अवस्था में ही
कीविता लिखना आरंभ कर दिया था। तब से लेकर देहावसान के समय तक आपकी
अमर लेखनी बराबर चलती रही। आपने कई हजार कविताओं, गीतों, कहानियों, रूपकों
मावनाट्य) एवं निबंधों की रचना की। आपने उपन्यास भी लिखे, जिनमें ‘गोरा’ और
घरबाइरे’ विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। आपके द्वारा रचित कहानियों में से ‘काबुलीवाला’
एक कालजयी कहानी है। कवि-शिरोमणि रवींद्रनाथ ठाकुर की कीर्ति का आधार-स्तभ है उनका काव्य-ग्रंथ ‘गीतांजलि’, जिस पर आपको सन् 1913 ई. में साहित्य का
नोबेल पुरस्कार प्राप्त हुआ था। आपकी अन्य रचनाओं में ‘मानसी’, ‘संध्या-संगीत’,
नैवेद्य’, ‘बलाका’, ‘क्षणिका’ आदि अन्यतम हैं। आपके द्वारा विरचित सैकड़ों गीतों
से स्वीद्र-संगीत नामक एक निराली संगीत-धारा ही बह निकली है। आपके द्वारा रचित
“जन गण मन.. ‘ भारतवर्ष का राष्ट्रीय संगीत है, तो आपकी ही रचना ‘आमार सोणार
बोग्ला’ पड़ोसी राष्ट्र बांग्लादेश का राष्ट्रीय संगीत है।

कवि-गुरु Rabindranath Thakur ने पश्चिम बंगाल में बोलपुर के निकट ‘शांतिनिकेतन’
नाम के एक शैक्षिक-सांस्कृतिक केंद्र की स्थापना की थी। यह केन्द्र गुरुदेव के सपनों
का मूर्त रूप रहा और आगे यह विश्व-भारती विश्वविद्यालय के रूप में प्रसिद्ध हुआ।
आपने देश के स्वतंत्रता आंदोलन में भी रुचि ली थी। शांतिनिकेतन में आने पर
मोहनदास करमचंद गाँधी को आपने ‘महात्मा’ के रूप में संबोधित किया था। राष्ट्रभाषा
के रूप में हिंदी के पक्ष में अपना मत देते हुए गुरुदेव ने कहा था-“उस भाषा को राष्ट्रभाषा के रूप में स्वीकार किया जाना चाहिए जो देश के सबसे बड़े हिस्से में बोली
जाती हो, अर्थात् हिन्दी ।

रवींद्रनाथ ठाकुर की म्रत्यु

7 अगस्त, 1941 ई. को इस महान पुण्यात्मा का स्वर्गवास हुआ।

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