mahatma gandhi ka jeevan parichay , mahatma gandhi biography in hindi: विश्व को समय-समय पर शान्ति का संदेश तथा मानवता का पाठ पढ़ाने के निमित्त महामानवों का आगमन होता रहा है। संसार में प्राचीनकाल से लेकर अब तक अनेकों महामानव का आविर्भाव हो चुका है। उनमें महात्मा बुद्ध, महावीर, ईसा, गुरु नानक, कबीर, तुलसी आदि। महात्मा गाँधी भी बीसवीं सदी के श्रेष्ठ महामानव थे।
नाम | मोहनदास करमचंद गांधी |
जन्म | 2 अक्टूबर, 1869 |
पिता | करमचंद गांधी |
माता | पुतलीबाई |
जन्मस्थान | गुजरात के पोरबंदर क्षेत्र में |
धर्म | हिन्दू |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
म्रत्यु | 30 जनवरी 1948 |
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महात्मा गाँधी की जन्म और वंश परिचय
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गुजरात प्रान्त के अन्तर्गत Porbandar नामक स्थान में
सन् 1869 ई. की 2 अक्टूबर को mahatma gandhi का जन्म हुआ था। उनके पिता Karamchand Gandhi थे। वे परम वैष्णव थे। माता पुतलीबाई भी बड़ी धर्मपरायण नारी थीं।
धार्मिक माता-पिता. और धर्मनिष्ठ वातावरण में जन्म लेने के कारण बचपन से ही
गाँधीजी पर धार्मिकता की छाप पड़ी थी। उनका नाम “मोहन दास करम चन्द माँधी”
रखा गया।
mahatma gandhi की शिक्षा
प्रारंभिक शिक्षा राजकोट में ही प्रारंभ हुआ। विद्यालय में वे मेधावी छात्र
नहीं थे, किन्तु चरित्रवान जरूर थे। सत्याचरण के प्रतिमूर्ति थे। विद्यालय में एक बार
निरीक्षक आये जो विद्यालय के छात्रों का निरीक्षण किए और छात्रों को कुछ शब्द भी
लिखने के लिए दिए। अधिकतर विद्यार्थियों ने अशुद्ध लिखा । शिक्षक ने इशारा करके सभी
को अपनी गलती सुधारने को कहा। सभी छात्र अपनी गलती ली, पर मोहन दास ने वैसा
नहीं किया।
मोहन दास विद्यालय में कुछ बुरी संगति में पड़ गये थे। जिसके कारण उन्हें बीडी
पीने, मांस खाने की आदत लग गई थी। पीछे होश आने पर पत्र लिखकर अपने पिता से
क्षमा याचना की और पिता ने क्षमा कर दी। मोहन दास के जीवन पर सत्यवादी राजा
हरिश्चन्द्र और भक्त प्रह्लाद के छाप पड़े थे । इस प्रकार उन्होंने माध्यमिक शिक्षा समाप्त
की। शिक्षा काल में ही उनकी शादी कस्तूरबा से हो गई थी। बा भी बड़ी धर्मपरायण
साध्वी और निडर थी।
दक्षिण अफ्रीका( South Africa) की यात्रा और सत्याग्रह प्रथमावस्था में वे राजकोट अहमदाबाद
तथा बम्बई में अपनी बैरिस्टरी शुरू की। किन्तु वहाँ उन्हें सफलता नहीं मिली। उसी
दौरान एक मुकदमे के सिलसिले में दक्षिण अफ्रीका जाना पड़ा। वहाँ उन्हें अंग्रेजों
की अदालत में एक कटुता का अनुभव हुआ। वहाँ उन्हें अंग्रेजों के अत्याचार के
अनाचार के प्रति आवाज उठायी और भारतीय जनता में आन्दोलन की भावना
जगाई।
असहयोग आन्दोलन का सूत्रपात, असहयोग आन्दोलन में महात्मा गाँधी की भूमिका
गांधीजी सन् 1914 ई. में भारत लौट आये
और यहां अपने देश की स्थिति का अध्ययन करते रहे । उन्होंने साबरमती में सत्याग्रह
आश्रम की स्थापना की। उनके प्रयास से गिरमिट प्रथा शुरू हुई।
बिहार प्रान्त में नील की खेती होती थी। खेती करने वाले किसानों पर निलहे
व्यापारी जो अंग्रेज थे अत्याचार करते थे। इस अत्याचार के प्रति गांधीजी सत्याग्रह किए
और उनके प्रयत्न से बिहार के चम्पारण में नील खेती का करवाना गैरकानूनी करार दिया
गया। भारत सत्याग्रह की यह पहली विजय थी ।
गांधीजी के कार्य प्रणाली और सत्याग्रह के प्रभाव को देखते हुए अंग्रेजी सरकार ने
एक आश्वासन दिया। सन् 1914 ई. से 1918 ई. के दौरान महायुद्ध चला था। इसी दौरान
अंग्रेजी सरकार महायुद्ध के बाद भारत को आजाद कर दिया जाएगा। इस आश्वासन की
विश्वास मान कर गांधीजी ने हर तरह से अंग्रेजों की मदद की, किन्तु युद्ध समाप्ति के बाद
आजादी देना तो दूर की बात उसने धारा सभा में रौलट बिल नाम का विधेयक लाया गया।
इस विधेयक का विरोध सारे देश में हुआ। पंजाब प्रान्त के जालियावाला बाग में निहत्थे आन्दोलनकारियों पर गोली चली और अनेकों ने अपने प्राण देश के लिए दे दिया। इस
नरसंहार से गांधीजी और जोरों से सत्याग्रह करने का संकल्प लिया।
अंग्रेज सरकार भारतीयों में फूट का बीज बोना चाहती थी, किन्तु गांधीजी सत्य और
अहिंसा के साथ-साथ एकता पर जोर देते थे । जनता का विषमताओं को मिटाने के लिए
उन्होंने हरिजन-सुधार और खादी ग्रामोदय का प्रचार आरंभ किया। अंग्रेजी कंपड़ों बहिष्कार
किया और स्वदेशी खादी कपड़ों को अपनाया।
राष्ट्रभाषा का प्रचार
अंग्रेजों के दिनों में हमारे देश की अपनी कोई
राष्ट्रभाषा नहीं थी। महात्मा गांधी दूरदर्शी थे । उन्होंने अपने विशाल दृष्टिकोण
समझ और देख लिया था कि भारत की अपनी एक राष्ट्रभाषा होनी परमावश्यक है ।
राष्ट्रभाषा के द्वारा ही हम समूचे देश को एक सूत्र में संगठित कर सकते हैं । यहीं
सब सीचकर सन् 1918 ई. में एक हिन्दी साहित्य सम्मेलन की आयोजन की गई।
सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए उन्होंने दक्षिण भारंत में हिन्दी प्रचार का बीड़ा
उठाया।
व्यक्तित्व
mahatma gandhi की बीसवीं सदी के संसार का शान्ति दूत के नाम से
जाना,जाता है। उनके शरीर में असीम शक्ति का भंडार था। सम्पर्क में आनेवाला हर कोई
उनके प्रभापुंज से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता था।
वे अहिंसा के पुजारी थे। अहिंसा और सत्य के प्रचारक थे। विश्व शान्ति के क्षेत्र में
उन्होंने प्रेम और अहिंसा अपनाने पर बल दिया । उनके विचार से सत्य और अहिंसा एक
ही तत्व के दो पहलू हैं। आत्मकथा, दक्षिण अफ्रीका का सत्याग्रह, प्रार्थना-प्रवचन,
धर्मनीति मेरे समकाली आदि उनके प्रसिद्ध ग्रंथ हैं । वे भारत को विकसित करने में तथा
विश्व में उसका सिर उठाने में अपना जीवन न्यौछावर कर दिये।
mahatma gandhi की बलिदान या आत्माहुति
mahatma gandhi के उदात्त विचार को ठीक से समझ न
पाने के कारण ही कुछ लोग गांधीजी के प्राण का दुश्मन हो गये और सन् 1948 ई. के 30
जनवरी की शाम को जब वे बिरला भवन से प्रार्थना सभा में जा रहे थे। नाथुराम गोडसे ने
उन्हें गोली मार दी और वे राम का नाम लेते हुए इस नश्वर संसार से बिदा ली। उनकी
हत्या से सारा संसार स्तब्ध रह गया।
महात्मा गांधी विश्ववन्धय चेतना के प्रवाह थे। वे एक महान सत्पुरुषों के
श्रेणी में आते हैं। वे केवल भारत का ही नहीं बल्कि अंधेरे में पड़ी हुई बीसवीं सदी की
मानवता का भी पथ-प्रदर्शन करते रहे । विश्व के इतिहास में गांधी युग सदा स्मरणीय और
वन्दनीय रहेगा। महात्मा गांधी अमर हैं।
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